'विचार प्रवाह'
Monday, August 4, 2014
आहटें .....
आज भोर
कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,
पूरब से उस लाल माणिक का
धीरे धीरे निकलना था
या
तुम्हारी आहटें थी ,
कह नहीं सकती -
दोनों ही तो एक से हो
जब क्षितिज पर
दस्तक देते हो ,
रौशनी और रंगीनियाँ साथ होती हैं .....!
प्रियंका राठौर
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