Monday, July 14, 2014

आज फिर ....





आज फिर -
हथेलियों से उन्हीं लम्हों को छुआ ,
जिन्हें कभी हमने साथ जिया था |

पता नहीं -
तुम्हें ढूँढा 
या 
खुद को पाया ,

लेकिन -
मन का झोला अभी भरा भरा सा है |

कह नहीं सकती -
तुम्हारे अहसासों से 
या  फिर 
दर्द की कतरनों से ....
या शायद -
दोनों ही से ...... !



प्रियंका राठौर  

4 comments:

  1. बहुत लाजवाब ... छूने से लम्हों में जान आ जाती है ... प्रेम महक उठता है ...

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद .... !

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  3. Your words are too effective.

    Thanks for delivering these types of poems.

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