बादलों की
आवाजाही के बीच
आज धूप
बहुत उजली थी ....
उफ़क से आई थी ,
बिल्कुल तुम्हारी उस
झक सफ़ेद कमीज की तरह ,
जिसके बटन में
कभी मेरा इक बाल
अटका था ...... !
प्रियंका राठौर
कल रात फिर
तेज बारिश हुयी थी ,
और
बूँद बूँद से टपकते तुम
मेरे अहसासों को
पूरा तर कर गए |
अब -
सुबह गीली है ,
आत्मा की नमी
बिस्तर के सिरहाने पड़ी है |
दिमाग का सूरज
अहसासों के बादल से बाहर
नहीं आना चाहता ,
आज फिर मुझे
'तुम' होकर ही दिन गुजारना होगा |
प्रियंका राठौर
तेरी गीली मुस्कराहटों से
भीगे हुए लम्हें
बूँद - बूँद
मेरे जेहन पर
टपकतें हैं .......
अब सब नम है .....!
प्रियंका राठौर
आज फिर -
हथेलियों से उन्हीं लम्हों को छुआ ,
जिन्हें कभी हमने साथ जिया था |
पता नहीं -
तुम्हें ढूँढा
या
खुद को पाया ,
लेकिन -
मन का झोला अभी भरा भरा सा है |
कह नहीं सकती -
तुम्हारे अहसासों से
या फिर
दर्द की कतरनों से ....
या शायद -
दोनों ही से ...... !
प्रियंका राठौर