Monday, August 4, 2014

आहटें .....





आज भोर 
कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,
पूरब से उस लाल माणिक का 
धीरे धीरे निकलना था 
या 
तुम्हारी आहटें थी ,
कह नहीं सकती -
दोनों ही तो एक से हो 
जब क्षितिज पर 
दस्तक देते हो ,
रौशनी और रंगीनियाँ साथ होती हैं .....!

प्रियंका राठौर 

Friday, July 25, 2014

सफ़ेद कमीज ....





बादलों की 
आवाजाही के बीच
आज धूप
बहुत उजली थी ....
उफ़क से आई थी ,
बिल्कुल तुम्हारी उस 
झक सफ़ेद कमीज की तरह ,
जिसके बटन में 
कभी मेरा इक बाल 
अटका था ...... !


प्रियंका राठौर  

Monday, July 21, 2014

वो बारिश ....




कल रात फिर 
तेज बारिश हुयी थी ,
और 
बूँद बूँद से टपकते तुम 
मेरे अहसासों को 
पूरा तर कर गए |
अब -
सुबह गीली है ,
आत्मा की नमी 
बिस्तर के सिरहाने पड़ी है |
दिमाग का सूरज 
अहसासों के बादल से बाहर
नहीं आना चाहता ,
आज फिर मुझे 
'तुम' होकर ही दिन गुजारना होगा |


प्रियंका राठौर 

Friday, July 18, 2014

नमी .....




तेरी गीली मुस्कराहटों से 
भीगे हुए लम्हें
बूँद - बूँद 
मेरे जेहन पर 
टपकतें हैं .......


अब सब नम है .....!


प्रियंका राठौर 

Monday, July 14, 2014

आज फिर ....





आज फिर -
हथेलियों से उन्हीं लम्हों को छुआ ,
जिन्हें कभी हमने साथ जिया था |

पता नहीं -
तुम्हें ढूँढा 
या 
खुद को पाया ,

लेकिन -
मन का झोला अभी भरा भरा सा है |

कह नहीं सकती -
तुम्हारे अहसासों से 
या  फिर 
दर्द की कतरनों से ....
या शायद -
दोनों ही से ...... !



प्रियंका राठौर