Monday, September 23, 2013

रफ़्तार ....




जो रफ़्तार में थे
उन पीले गुलमोहरों पर
बैठी तितली को ना देख पाए ।
ना छू पायें उस ऒस की बूँद को ,
जो सुबह सुबह घास के आखिरी छोर पर टिकी थी ।
जो रफ़्तार में थे
मूंगफली के दानों को कुतर कुतर कर खाती उस गिलहरी को पीछे छोड़ गये ,
घर की बालकनी में रखा तुलसी का पौधा सूख रहा है ।
पिज़्ज़ा बर्गर की होम डिलीवरी में , माँ का हलुआ पुड़ी छूट चूका है ।
वो जो रफ़्तार में थे
सब कुछ पीछे छोड़ गए हैं ...
रिश्ते नाते , प्यार अपनापन ,
सब कुछ गति में भूल चुके हैं ...!




प्रियंका राठौर