Thursday, April 26, 2012

अनिश्चितता .....



अनिश्चितता की भी 
सीमा होती है ....

अनुमानों का गुबार 
या फिर 
स्थायित्व  के खरे मापदंड 
दिशा सूचक रूप में 
अनिश्चितता को भी 
निश्चित स्थापित करते हैं ....

जुएँ के पत्ते 
तभी तक 
अनिश्चित होते हैं 
जब तक बिना बांटें 
गड्डी के रूप में 
नियति के हाथ होते हैं ...
खिलाड़ियों के बीच
बँट जाने पर 
अनिश्चितता पर विराम 
लग जाता है 
और -
निश्चित सत्य की ओर
बढ़ते हुए 
कदम दर कदम 
स्थायित्व के दिशा सूचक 
अन्तत :
किसी की विजय श्री  का 
उद्घोष करते हैं ....

शायद ..... इसलिए -
अनिश्चितता के घर भी 
उम्मीदों के दीये जलते हैं ....

क्योकि -
अनिश्चितता की भी 
सीमा होती है .....!!!!!!


प्रियंका राठौर 

Tuesday, April 24, 2012

पलों को थाम लिया है ...




तुम्हारा साथ देने को 
पलों को थाम लिया है ....
कुछ बची हुयी तुम्हारी 
अनकही बातें सुनने  को 
पलों को थाम लिया है ....


दिया है वक्त अब और तुम्हे 
तुम्हारे सपनों को पूरा 
करने की ख्वाहिश में 
पलों को थाम लिया है ....


फिर कभी मिलेंगे हम 
जीवन की सच्चाई को आत्मसात कर
इस अरमान को लिए दिल में 
पलों को थाम लिया है ....
हाँ -
तुम्हारा साथ देने को 
पलों को थाम लिया है ....!!!!!






प्रियंका राठौर 




Saturday, April 21, 2012

तुमसे बेहतर......




गयी थी लाने 
उपहार तुम्हारा ....
सामानों की भीड़ में 
ढूंढ सकी न कुछ ....

फिर सोचा -
क्यों ना तुमको चाँद ही दे दूँ ,
लेकिन एक चाँद को 
दूजे चाँद की जरूरत  क्या ....

फिर सोचा -
क्यों ना तुमको सूरज  दे दूँ ,
लेकिन तुम्हारे ओज के आगे 
उस सूरज की चमक ही क्या ....

फिर सोचा -
क्यों ना तुमको पूरा आसमां ही दे दूँ ,
लेकिन तुम्हारे विस्तार के आगे 
उस आसमां की मिसाल ही क्या ....

बहुत सोचा ,
बहुत परखा ,
हर कुछ तुमसे 
कमतर था ....

फिर सोचा -
क्यों ना तुमको मै 'तुमको' ही दे दूँ 
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....
हाँ -
तुमसे बेहतर भी कुछ है क्या ....!!!!



प्रियंका राठौर 

Monday, April 2, 2012

प्यार नहीं मरा है ......





भावनाओं  की आग 
में जल 
शिखर सागर बन 
धरा पर फ़ैल गया ......
अब वह -
गहरा हो चला था ....
विस्तृत हो चला था ....
हर आग को 
खुद में समां लेने 
में सक्षम था ........

झुलसते हुए अंगारों 
और शोलों को 
खुद की गहराई में 
अन्दर तक ले जाना 
फिर शांत भाव से 
काले हीरे में बदल देना 
उसकी पहचान हो गयी .......

लेकिन -
फिर भी  दुःख था 
की आग उसे  
झुलसा  न पायेगी 
क्योकि उसका 
अस्तित्व ही बदल गया था ......

क्यों ये दुःख है 
वह मंथन करने लगा 
अपने अंतस को 
टटोलने लगा ....
एस खोज में 
मन के अंदर 
कोमल - कोमल यादें 
नजर आयीं 
साथ ही नजर आई 
वह ज्वाला ---- जो 
कभी रौशन  करती थी 
शिखर को ....
साथ था ....
अहसास थे ....
लेकिन - तेज हवा के झोके ने 
आग को दिया बल 
और शिखर पिघल कर
सागर हो गया ....

ओह ....!!!! हाँ ....!!!!
यही तो सच था ,
तभी -
अस्तित्व बदल जाने पर भी 
अहसासों में 
आग का वजूद 
जिन्दा  है ......

हाँ -----
प्यार नहीं मरा है ........!!!!
प्यार नहीं मरा है ........!!!!


प्रियंका राठौर