अनिश्चितता की भी
सीमा होती है ....
अनुमानों का गुबार
या फिर
स्थायित्व के खरे मापदंड
दिशा सूचक रूप में
अनिश्चितता को भी
निश्चित स्थापित करते हैं ....
जुएँ के पत्ते
तभी तक
अनिश्चित होते हैं
जब तक बिना बांटें
गड्डी के रूप में
नियति के हाथ होते हैं ...
खिलाड़ियों के बीच
बँट जाने पर
अनिश्चितता पर विराम
लग जाता है
और -
निश्चित सत्य की ओर
बढ़ते हुए
कदम दर कदम
स्थायित्व के दिशा सूचक
अन्तत :
किसी की विजय श्री का
उद्घोष करते हैं ....
शायद ..... इसलिए -
अनिश्चितता के घर भी
उम्मीदों के दीये जलते हैं ....
क्योकि -
अनिश्चितता की भी
सीमा होती है .....!!!!!!
प्रियंका राठौर