Saturday, March 17, 2012

मीठी याद ----





कभी उलझावों के समंदर में डूबने लगती हूँ ... तो अपने चिर परिचित प्रांगण में जाती हूँ .... आज फिर गयी थी .... घुमड़ते हुए सवालों के जबाब ढूंढने ..... वहाँ कुछ भी तो नहीं बदला ... वही मूर्तियां थीं ... वही खनकते हुए घंटों की आवाजें ..... बस साज सज्जा पहले से और बेहतर हो गयी थी .... कदम बढ़ रहे थे .... अचानक उसी जगह रुक गए .... जहाँ बचपन में रुकते थे .... वही कजरारी आँखों वाली देवी की मूर्ति के सामने .....
अतीत के झरोखों से छुटपन की खुद को मै देख रही थी .... मौसी की ऊँगली थामें .... बाल मन को वह मूर्ति इतनी सुन्दर दिख रही थी , की आगे बढ़ने का मन ही नहीं हो रहा था .... बस अपलक निहार रही थी ... जैसे गुड़ियों से भी प्यारी चीज दिख गयी हो ....मौसी से पूछा .... ‘गुड्डी मौसी ये किसकी मूर्ति है ?’ .... उन्होंने जबाब दिया .... देवी माँ की .... सबकी माँ हैं ..... ‘डग्गो रानी’ तुम्हारी भी ( वो प्यार से मुझे डग्गो रानी कहा करती थीं ) उनकी बात दिमाग में अपनी जगह बना चुकी थी ... मौसी पूजा की थाल लेकर आगे बढ़ गयी .... लेकिन बाल सुलभ कुराफाती मन , कुछ कल्पनाएँ गढ़ रहा था .... आँखों में बिजली चमकी और बिना कुछ सोचे समझे ४-५ वर्ष की मै झट जाकर मूर्ति की गोद में बैठ गयी और गले में बाँहों का हार डाल दिया .... तभी पुजारी ने देखा और मंदिर में हलचल मच गयी .... पुजारी मुझे उतारने की कोशिश कर रहे थे और मै जिद पकड़े थी ....नहीं उतरना है ...वो मेरी माँ हैं ..... कुछ देर में सारे वाकये की खबर मौसी को लगी .... वो मेरे पास आई और समझा कर मुझे नीचे उतारा .... मेरी आँखों से मोती गिरते जा रहे थे ... उन्होंने मुझे गोद में उठाकर पुचकारते हुए कहा --- ‘बच्चा --- वो सिर्फ तुम्हारी ही माँ नहीं हैं ... वो तो सबकी माँ हैं ... मेरी , तुम्हारी मम्मी की , हम सब की माँ ....उनको प्यार करने के लिए उनकी गोद में थोड़े ही ना बैठा जाता है ... सिर्फ आँख बंद करके महसूस करो .... देखो तुम्हारे सामने मुस्कराते हुए आ जाएँगी ...’ समय का चक्र बढ़ता गया .... लेकिन मौसी की बात कहीं आत्मा तक अपनी पैठ बना चुकी थी ..... जो आज भी खुशबु की तरह मुझे महकाती है ......
माँ की मूर्ति देखते ही खूबसूरत लम्हों की यादे चलचित्र की भांति आँखों के सामने  से गुजर गयी ....
मै मुस्करायी ..... उस मंदिर के प्रांगण को नमन किया .... और चल दी ..... अब मै खुश थी .... एक बार फिर से सवालों के जबाब सामने थे ....... !!!!!!!!

प्रियंका राठौर 

Monday, March 12, 2012

मै मर चुकी हूँ ....




शरीर को 
सूरज की तपिश 
झुलसा रही है ....
बनते हुए 
जख्मों से 
खून का रिसना 
बदस्तूर जारी है ....
कदम बढ़ना 
चाहते हैं ,
लेकिन -
चाहकर भी 
बढ़ नहीं पाते....

आह !
शरीर धराशायी हो गया ....
चेतना लुप्त  
हो रही है ....

अरे !
कुछ दिख रहा है ,
धुंधला सा -
वो कवच ही है ना
जो टूट कर
मिट्टी में मिल चुका है....
जीव दूर खड़ा 
मुस्करा रहा है ....

आह !
शायद -
मै मर  चुकी हूँ  ....
और -
दूर खड़े होकर 
समय की रास लीला 
देख रही हूँ ....
क्योकि -
अभी शरीर का 
मिट्टी में मिलना 
शेष है  .........!!!!!!!


प्रियंका राठौर 

Saturday, March 3, 2012

मिलन.....





ना ना 
मत तोड़ना
उस क्षितिज को 
वह तो 
यूँ ही  बस
कह दिया था तुमसे ......


वह दूर क्षितिज 
खामोश ,
शांत ,
निश्छल ,
वही तो पड़ाव है 
हमारे मिलन का ........


कभी देखा है 
तुमने 
धरा और अम्बर को 
मिलते हुए 
लेकिन -
वो मिलते हैं 
उसी क्षितिज पर 
हमारी ही तरह .......


इसलिए -
मत तोड़ना 
उस क्षितिज को 
अभी कई सदियाँ 
और 
कई मिलन बाकी हैं ................!!!!!!




प्रियंका राठौर