Saturday, November 19, 2011

'मधुशाला '......





हल्की - हल्की
सर्द - सर्द सी
ऐसी ही उस रात -
भटकते - भटकते
देखी थी  वह
'मधुशाला '
ना जाना , ना समझा तब
बस अनुभव की ही
बात हुयी थी .....
'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक
एक लम्बे सफ़र की
चाह हुयी थी ....

सवाल - जबाब के
मकडजाल में
रिश्तों की उलझन
बन आई थी ...
तुम थे
मै थी
और कुछ
अनकही सी नजदीकियां थी ....
मौन सी -
निशब्द सी ,
बातों में
कोई अहसास उभर के आया था .....

भावों की दस्तक ने
राहें कर दी
जुदा - जुदा .....
जीवन की उधेड़बुन में
बदल गया है
सब कुछ कितना ,
शेष रह गयीं हैं -
बस -
वक्त की जंजीर में जकड़ी
स्तब्ध सी ये नजरें
जो तकती हैं
राह आज भी
'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक की ...........!!!!!!



प्रियंका राठौर

12 comments:

  1. बेहद गहन भाव समन्वय।

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  2. वक्त की जंजीर में जकड़ी
    स्तब्ध सी ये नजरें
    जो तकती हैं
    राह आज भी
    'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक की ...........!!!!!!
    kya kahun ...

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  3. Bahut sundar ,,,,


    वक्त की जंजीर में जकड़ी
    स्तब्ध सी ये नजरें
    जो तकती हैं
    राह आज भी
    'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक की ...........!!!!!!

    Wah :-)

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  4. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , बधाई .

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  5. वाह! बेहतरीन।

    सादर

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  6. जो तकती हैं
    राह आज भी
    'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक की ...........!!!!!!लाजवाब प्रस्तुती.....

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  7. बेहतरीन...प्रियंका!!

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  8. बस -
    वक्त की जंजीर में जकड़ी
    स्तब्ध सी ये नजरें
    जो तकती हैं
    राह आज भी
    'मधुशाला ' से 'मधुशाला ' तक की ...........!!!!!!
    वाह प्रियंका जी क्या बात है बहुत ही खूबसूरती से मनोभावों को उकेरा है आपने बहुत खूब ....
    समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html

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  9. मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम्हारा ब्लॉग भी है.... वो तो आज देखा ..... बहुत अच्छा लगा... आज इत्मीनान से पूरा ब्लॉग देखूंगा....

    रिगार्ड्स....

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  10. आदरणीया प्रियंका राठौर जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपकी रचना ने बांध लिया है …
    जीवन की उधेड़बुन में
    बदल गया है
    सब कुछ कितना ,
    शेष रह गयीं हैं -
    बस -
    वक्त की जंजीर में जकड़ी
    स्तब्ध सी ये नजरें
    जो तकती हैं
    राह आज भी
    'मधुशाला' से 'मधुशाला' तक की ...........!!!!!!

    जज़बातों से लबरेज़ नज़्म !
    दुआएं हैं ,आपकी 'मधुशाला' से 'मधुशाला' तक की राह आप पुनः प्राप्त कर सकें …:)

    सुंदर रचना के लिए आभार !
    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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