Friday, July 29, 2011

तेरे नक़्शे कदम पर.......






चलते हुए तेरे नक़्शे कदम पर
अपनी जिन्दगी ही भुला बैठे
क्या थे हम और
खुद को क्या बना बैठे .....
जनम जनम की बातें थी
पर एक जनम न कट पाया
रूठने मनाने के मंथन में
अपना सर्वस्व ही लुटा बैठे .....
खोज - खोज कर तुमको
हर चेहरे में जीवन ही रीत गया
ढूँढने और करीब आने की दौड़ में
अपना वजूद ही मिटा बैठे .....
क्या थे हम और
खुद को क्या बना बैठे .....
चलते हुए तेरे नक़्शे कदम पर
अपनी जिन्दगी ही भुला बैठे .......!!!!




प्रियंका राठौर

Sunday, July 24, 2011

शब्दों से बलखाते तुम ......







जीवन के इन
पन्नों पर
शब्दों से बलखाते तुम ......
जो बन न पाया
सही क्रम
शब्दों का
हो गए पन्नें
अर्थहीन से .....
होते जो शब्द
सही क्रम में
बन जाती
एक रचना
अर्थपूर्ण , भावमयी ,
कालजयी सी ,
रंगों की
समष्टि सी .....
लेकिन अब भी -
जीवन के इन
 पन्नों पर
शब्दों से
बलखाते तुम........
बस -
 नहीं है  क्रम
आज शब्दों का .........!





प्रियंका राठौर





Monday, July 18, 2011

कुछ लम्हें ....



नहीं जानती
क्या सही
क्या गलत
पर कभी कभी
कुछ लम्हें
जिंदगी बन जाते हैं .....
गुथे हुए धागे से
पानी के अंदर बूंदों से
कलम और स्याही से
ना बिन उनके
जिया जाये
ना साथ उनके
जिया जाये
साथ होकर भी
दूर हैं.......
दूर होकर भी
साथ हैं .......
एक दिवास्वप्न की तरह
जीवन और संघर्ष की तरह
खोकर उनको
अस्तित्व जाता है
पर पाकर उनको
अस्तित्व ही डूब जाता है ....
कुछ लम्हें .....
जिंदगी बन जाते हैं ,
क्या सही
क्या गलत
नहीं जानती
पर
कुछ लम्हें
जिंदगी बन जाते हैं ..........



प्रियंका राठौर   

Friday, July 15, 2011

यक्ष प्रश्न .....





आज फिर से
एक बार......
है वही मंजर
मद्धम मद्धम
टूटती सांसों
में आस है
जीने की कहीं ......
मरू में नीर बिंदु सी ....
पत्थर में ईश सी .....
हर आती और जाती
निशा के संग
स्पर्श करना
इस अहसास से
उस कोमल गात को
क्या जीवन बाकी है .........
है कितना दुष्कर
हर बार एक म्रत्यु
छुअन से पूर्व
फिर भी
 स्पर्श करना है
जीना है ...
और बस
जीते जाना है .....
इस उम्मीद में
आज फिर
बच गया जीवन ....
कल का क्या ?
अनिश्चितता से भी परे......
एक इंतजार
दीप की लौ से
डबडबाते जीवन का
या फिर
कालचक्र का ......
अर्थहीन सा यक्ष प्रश्न .....
जिज्ञासा है
पर जान कर भी
अनजान बनने का ढोंग ....
फिर भी –
हर बार --------

वही मंजर
टूटती , मद्धम
सांसों में
आस है जीने की
पत्थर में ईश सी ......
मरू में नीर बिंदु सी .........



प्रियंका राठौर

Monday, July 11, 2011

तुममे ही.....





हुयी भोर छायी लालिमा
पंछियों की ताल संग
तुमको ही मैं गाती हूँ ........
जस – जस रंगता जाता अम्बर
तस – तस अधरों पर
मधुर मुस्कान बन जाते तुम
कभी कलियों की सुगंध बन
बगिया महकाते जाते तुम ........
साँस - साँस पर है अब अंकन
क्या मैं हूँ और क्या हो तुम
नहीं अंतर अब हम - तुम में
तुम ही मैं हो मैं ही तुम ..........

हुयी रात छायी चांदनी
जुगनू की चम् चम् संग
तुममे ही मैं इठलाती हूँ
ना मैं रुक्मणी ना  मैं राधा
मैं तो बस मीरा बन
तुममे ही मैं खोतीं जाती हूँ ......
हाँ –
तुमको ही मै गाती हूँ .......
तुममे ही खोती जाती हूँ .............



प्रियंका राठौर

 

Wednesday, July 6, 2011

जिन्दगी खूबसूरत है.....







जिन्दगी खूबसूरत है
बस देखने के लिए
एक नजर चाहिए ......

क्या देखा कभी ध्यान से
नीले - नीले अम्बर में
कहीं रंगों भरे कैनवास भी हैं ......
शांत से दिखने वाले जल में
कितना गहरा संसार भी है ......
बारिश की बूंदों में
रुनझुन रुनझुन आवाज भी है ......
ची ची करती चिड़ियों में
कहीं मनमोहक गान भी है .......
रंग बिरंगे फूलों में
खूबसूरत मुस्कान भी है ......
हवा के ठन्डे झोखों में
एक अल्हड़ सी पुकार भी है .....
इठलाती बलखाती  तितलियों में
कहीं प्यार का राग भी है ......
कहीं मंदिर के घंटों में
आत्म बोध का ज्ञान  भी है ....
कही चौकड़ी भरते बच्चों में
जीवन का आधार भी है .......

देख सको तो देख लो एक बार -
जिन्दगी खूबसूरत है
बस देखने के लिए
एक नजर चाहिए .................



प्रियंका राठौर