Monday, February 21, 2011

भीगे भीगे से शब्द ....







भीगे भीगे से शब्द
हैं व्याकुल कुछ
भावों का मुक्ताहार बनाने को !
स्वप्नों का जाल बुनकर
पलकों में मधु पराग छिपाए
ना जाने किसका इंतजार ,
हर एक दस्तक देती थी
उत्सुकता किसी सन्देश की !
नियति इन्तेजार करवाती रही
जीवन बीत गया !
आस की हुयी निराश में तबदीली
पलकों से स्वप्न झरें
कुछ टूटे बिखरे से
यहीं कहीं धरती पर !
ऐसे में हे ! ईश
तुम आये बनकर शिवम् स्वरूप
भावों का फिर संचार हुआ
नया मुक्ताहार हुआ 
प्रेम नीर से रंजित 
भीगे भीगे से शब्द 
जो हैं व्याख्येय 
श्वेत समर्पण रूप !!





प्रियंका राठौर







Thursday, February 3, 2011

' अर्धनारीश्वर '






आदि अनादि कालों से
पौराणिक अपौराणिक गाथाओं से 
'अर्धनारीश्वर ' संज्ञा की होती है पुष्टि
क्या है अर्थ इस शब्द का ?
निर्मित किया ब्रह्म ने
दो चेतन पिण्डों को
दिया एक नाम नारी का
और दूजा पुरुष का !
नारी कोमल सुकोमलांगी
पुरुष बलिष्ठ कठोर !
था पुरुष निर्मम  भावशून्य
नष्ट कर देता किसी जड़ या चेतन को
बिना किसी अवसाद के !
तथापि थी नारी
भावप्रधान ममतामयी मूरत
स्रष्टि के कण - कण को
अपने कोमल स्पर्श से
सिक्त करना ही थी उसकी नियति !
देखा ब्रहम ने
दो परस्पर विरोधी स्वरूप
सोचा -
नारी दे रही जीवन
और कर रहा पुरुष नष्ट
उसकी रचित नव निर्मित स्रष्टि  को !
संतुलित करने के लिए
करें क्या उपाय -
उसी क्षण अचानक 
बोला अचेतन मन  ब्रहम का 
करो ऐसी  रचना 
जो  सम्मिश्रण हो नारी पुरुष गुण का !
उपाय तो श्रेष्ठ  था 
पर थी समस्या एक 
नारी पुरुष थे अलग - अलग पिण्ड
फिर उनका एक रूपांतरण 
हो कैसे संभव 
युक्ति  सूझी उन्हें एक 
बांध दिया उन्हें 
एक दाम्पत्य  बंधन में !
हल  निकल आया 
ब्रहम की समस्या का !
नारी के कोमल भाव 
व  पौरुषत्व  पुरुष का 
पोषक  होंगें स्रष्टि के !
यही  संकल्पना  थी 
' अर्धनारीश्वर ' की !
आधे भाव नारी के 
आधी शक्ति  पुरुष की 
मिलाकर बनी  एक 
अलौकिक  रचना 
होकर दोनों  में  तादात्म्य  स्थापित 
अर्थ ज्ञात हुआ 
सही विवाह  बंधन का ,
भिन्न - भिन्न दो रूप 
हुए  जब एक 
मिल गया  नव जीवन 
स्रष्टि को 
एक अटल  सत्य  के साथ  .....!!!






प्रियंका राठौर