Wednesday, December 29, 2010

जीवन और म्रत्यु .....





अजब निराला खेल है
जीवन और म्रत्यु का
क्यों होता है अक्सर
म्रत्यु का पलड़ा भारी !
जीवन है कठिन और
म्रत्यु आसान -
आज वह है
कल नहीं होगा
क्या पता अभी
कुछ पलों में ही
निगल ले कालचक्र उसको
यही तो शाश्वत सत्य है
जीवन का !
अगर है जीवन निश्चित
तो उतनी ही म्रत्यु ध्रुव
फिर क्यों ये अवसाद !
होकर भयाक्रांत
इस खेल से -
नहीं है रुकना !
अगर एक म्रत्यु ही है
कई जीवन ज्योति
तो हाँ स्वीकार है
यह शिव ,
जो है कटु सत्य
शायद -
"सत्यम शिवम् सुन्दरम " .......



प्रियंका राठौर



Friday, December 24, 2010

मौन की भाषा ...







सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ....
स्वत: स्फुरित मधुर - मधुर ,
बिन बोले ही सब कुछ बोले ,
भेद जिया के खोल दे !
समझ सको तो समझ लो इसको ,
ये तो दिल कि भाषा है ,
कुछ - कुछ में ही है सब कुछ ,
प्रेममयी जीवन रस धरा है !
सुनी कभी क्या मौन कि भाषा ...
स्वत: स्फुरित ये मौन की भाषा ...
शब्द रहित ये मौन की भाषा .....!!




प्रियंका राठौर

Monday, December 20, 2010

बिटिया क्यों होती परायी है ?





सूत्रधार ने रचा जब उसको ,
सोचा नया जीवन संसार बनाएगी ,
अपने आँगन का फूल बन
दुनिया को महकाएगी .....
लेकिन आई बिटिया धरा पर
बनकर परायी अमानत .....
माई कहती जाना है
बिटिया तुझे ससुराल को ,
तू तो है उनकी अमानत ,
सहेजा है बस अपने संसार में !
कन्यादान किया बापू ने
पहुंची बिटिया ससुराल को .....
आई है वह दूजे घर से ,
इसलिए ससुराल में भी वह परायी है ...
जिससे रिश्ता बना जनम जनम का
उससे भी दूजा दर्जा ही पाती है !
मायके में भी है परायी ....
ससुराल में भी है परायी .....
बिटिया क्यों होती परायी है ?
नियति के इस भंवर जाल में ,
बिटिया ही डूबती उतराती है ,
बिटिया देती अपना सब कुछ वार ,
फिर भी परायी अमानत ही रह पाती है ................!!





प्रियंका राठौर

Monday, December 13, 2010

परिवर्तन .....






परिवर्तन  अच्छा है  ,
लेकिन इतना कि ,
अपने - अपने रहें ,
दूसरे ना बन जाएँ !
लहरों के साथ ,
बहना  अच्छा है , 
लेकिन इतना कि ,
बिना भीगे -
दामन साफ़ बच जाये !



प्रियंका राठौर 

Thursday, December 2, 2010





अहसासों में बसता है ,
निगाहों से बयाँ होता है ,
निशब्द बंधन है ,
पर रिश्तों से परे है ,
शायद -
यही प्यार है ,
जो दिखाया नहीं जाता ,
दिख जाता है ,
लम्हों में सिमट जाता है ,
रूह की झंकार है ,
जीवन की आस है ,
भावों का गुंथन है ,
हाँ -
यही प्यार है ,
जो शब्दों से परे ,
अभिव्यक्ति है समर्पण रूप ......!!




प्रियंका राठौर