Friday, October 8, 2010

स्याह राहों पर......






स्याह राहों पर
चलते - चलते
कही किसी छोर पर
अजनबी रौशनी का अहसास
सिर्फ अहसास
या सच्चाई
कही मरीचिका तो नहीं
स्याही बीच
मरीचिका असंभव
फिर क्या
शायद -
भावों का भंवर
एकाकी सफ़र में
एक दिवास्वप्न !
राह बहुत लम्बी है
पर कही तो है अंत
साथ है केवल
एक खामोश सच्चाई
हाँ -
रौशनी से भी प्यारी
कट जायेगा सफ़र
स्याह राहों पर
चलते - चलते ...........





प्रियंका राठौर

3 comments:

  1. इन्श'अल्लाह आप मंज़िल पाएंगी!
    शुभ कामनाएँ!
    आशीष
    --
    प्रायश्चित

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  2. सुंदर रचना...बढ़िया भाव से सजाया है आपने इस रचना को..बधाई

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