Monday, October 11, 2010

शब्द नहीं कहने को .......







शब्द नहीं कहने को ,
आत्मा अकुलाई है !
क्या भूलूं क्या याद करूं ,
सब मन की गहराई है !
टूट - टूट कर साँस बढ रही
फिर भी -
आस की डोर
ना , डगमगाई है !
अंत नहीं जीवन का ,
सब बंधन है -
सब बंधन है !
कोमल - कोमल सुख का बंधन ,
तृषित - तृषित दुःख का बंधन ,
पार निकल जाने को ,
आत्मा छटपटाई है !
शब्द नहीं कहने को .............





प्रियंका राठौर



18 comments:

  1. अच्छा लिखा है प्रियंका........

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  2. कोमल - कोमल सुख का बंधन ,
    तृषित - तृषित दुःख का बंधन ,
    इन शब्दों में तो आत्मा उतर आयी है.

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  3. आत्मा छटपटाई है !
    शब्द नहीं कहने को .....

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति ।

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  4. बहुत ही बढ़िया।

    सादर

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  5. BHAVPRABAL RACHNA ....
    bahut sunder ....

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  6. इसी छटपटाहट का नाम जिंदगी है.सुंदर प्रस्तुति.

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  7. टूट - टूट कर साँस बढ रही
    फिर भी -
    आस की डोर
    ना , डगमगाई है !
    बेहतरीन आशाओं से सजी संवरी प्रेरक प्रस्तुति ....

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  8. क्या भूलूं क्या याद करूं ,
    सब मन की गहराई है !

    जीवन का यथार्थ और न भूलने का सच!!

    अंतर्मन के भावों को उकेरती बेहतरीन प्रस्तुति!!

    आभार!

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  9. कोमल - कोमल सुख का बंधन ,
    तृषित - तृषित दुःख का बंधन ,
    पार निकल जाने को ,
    आत्मा छटपटाई है !
    शब्द नहीं कहने को .............

    बहुत सुन्दर प्रियंका जी.
    कमाल की प्रस्तुति है आपकी.

    मेरे ब्लॉग को न भुलाईयेगा,प्लीज.

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  10. वाकई प्रियंका बहुत सुंदर रचना
    सच में शब्द नहीं कहने को

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  11. शब्द नहीं कहने को ,
    आत्मा अकुलाई है !
    क्या भूलूं क्या याद करूं ,
    सब मन की गहराई है !
    बहुत सुन्दर!

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  12. कोमल - कोमल सुख का बंधन ,
    तृषित - तृषित दुःख का बंधन ,
    पार निकल जाने को ,
    आत्मा छटपटाई है !

    ....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...

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  13. शब्द नहीं कहने को ,
    आत्मा अकुलाई है !
    क्या भूलूं क्या याद करूं ,
    सब मन की गहराई है !

    कमाल की प्रस्तुति.सुंदर अभिव्यक्ति.

    बधाई.

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  14. कोमल सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  15. क्या भूलूं क्या याद करूं ,
    सब मन की गहराई है !

    भावमय प्रस्‍तुति ।

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