Sunday, October 10, 2010

विवाह







"शहनाई के रोमांचक स्वरों , घर की मांगलिक सज्जा प्रियजनों के साक्षी और आशीर्वाद से गुंजित वातावरण में अग्नि के सामने मन्त्रों का उच्चारण होता है और दो ह्रदय एक हो जाते है ! उस समय भावनाये संस्कारों से उत्पन्न होती हैं - ह्रदय एक अनजान व्यक्ति को अपना सब कुछ मान लेता है ! जिसको अपना मान लिया फिर उसकी हर बात को अपना मानने के लिए मन तत्पर रहता है ! उसे स्वीकार होता है - साथी का हर आग्रह , हर अधिकार और बहुत से अवगुण भी ! विवाह वेदी पर बैठे जो प्रतिज्ञा की थी वह अजन्म मन के किसी कोने में अपना अधिपत्य जमाये रहती है ! सुख - दुःख , अच्छा - बुरा , सब बाटेंगे हम - यही सच्चाई  याद रह जाती है और एक प्यार व विश्वास का रिश्ता कायम हो जाता है ! "





प्रियंका राठौर

2 comments:

  1. एक प्यार व विश्वास का रिश्ता कायम हो जाता है !
    आपसे बिलकुल सहमत हूँ

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  2. aap ne jo likha wo apni jagah bahut sahi hai.... lakin aap kisi mahtvtaa denge ye aap par nibhar karta hai na...jiske saanth aap agnee ko sakshi maan kar 7 saath fere le rahi ho usse... ya jisse pahle kabhi dil se appna manna ho use man se man ki bhavannaye judna he mere nazar main vivaha hai...baki jaisse jiski manyta...

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