अजब निराला खेल है
जीवन और म्रत्यु का
क्यों होता है अक्सर
म्रत्यु का पलड़ा भारी !
जीवन है कठिन और
म्रत्यु आसान -
आज वह है
कल नहीं होगा
क्या पता अभी
कुछ पलों में ही
निगल ले कालचक्र उसको
यही तो शाश्वत सत्य है
जीवन का !
अगर है जीवन निश्चित
तो उतनी ही म्रत्यु ध्रुव
फिर क्यों ये अवसाद !
होकर भयाक्रांत
इस खेल से -
नहीं है रुकना !
अगर एक म्रत्यु ही है
कई जीवन ज्योति
तो हाँ स्वीकार है
यह शिव ,
जो है कटु सत्य
शायद -
"सत्यम शिवम् सुन्दरम " .......
प्रियंका राठौर